हिंदुस्तान के कण-कण में निर्माण के प्रमाण मिलते हैं। कुछ वर्ष पूर्व बिहार के लखीसराय में लाल पहाड़ी पर पुराने बौद्ध मठ का अवशेष मिला।
लखीसराय लाल पहाड़ी पर खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध की क्षतिग्रस्त मूर्तियां मिली हैं। मूर्ति में बुद्ध नृत्य की मुद्रा में दिखाई पड़ रहे हैं। खुदाई टीम का मानना है कि ऐसी दुर्लभ मूर्तियों का मिलना यह दर्शाता है कि यहां कभी काफी समृद्ध साधना केन्द्र था, जहां भगवान बुद्ध के कई रूपों की साधक पूजा करते थे।
शांतिनिकेतन के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर श्री अनिल कुमार जी और बिहार के कला संस्कृति विभाग ने ASI की अनुमति से इस पर अद्भुत कार्य किया है। 3 वर्षों से खुदाई जारी है और लगभग पूरी हो चुकी है। गंगा के मैदान में पहाड़ी (Hill top) पर मिला यह अवशेष अनूठा है और अपनी तरह का अकेला भी।
मुझे भी इसे नजदीक से देखने का मौका मिला। पहाड़ी को चीरकर किउल नदी से पानी लाना और उसे जमा करने की व्यवस्था अनोखी है। उसके स्प्ष्ट प्रमाण आज भी मौजूद हैं और दृष्टिगोचर भी। देखने से ही प्रतीत होता है कि कितनी मेहनत और निपुणता से इसका निर्माण किया गया होगा! सुरक्षा के लिए चारों कोनों पर व्यवस्था है। बौद्ध भिक्षुओं के लिए रहने और अध्ययन का अलग-अलग कमरा है। हठयोग करने के स्थान नियत हैं। एक पूरा बरामदा बना हुआ है। बीच में पूजा और साधना के लिए जगह है। जल निकासी की व्यवस्था वैज्ञानिक तरीके से की गई है। अनोखी मूर्तियाँ हैं। पत्थरों को इतने करीने से काटा गया है और इतनी महीनता से उस पर कार्य किया गया है कि सहसा यह विश्वास नहीं होता कि कभी हमारी सभ्यता इतनी उन्नत रही होगी।मैं खुद को सौभाग्यशाली समझता हूँ कि मुझे प्रोफेसर साहब का सान्निध्य मिला। बहुत विस्तार से उनसे चर्चा का मौका मिला। प्रोफेसर साहब के अनुसार यह बौद्ध धर्म के महायान शाखा का “विहार” है जबकि नालंदा, विक्रमशिला और तेलहारा “महाविहार” हैं। इसके म्यूजियम अनेक बेशकीमती मूर्तियों और प्रतीक चिन्हों से भरे पड़े है।
इस मठ की एक और विशेषता है इस पर मिले महिला भिक्षुओं के रहने के प्रमाण। मिले साक्ष्य से ज्ञात होता है कि एक महिला भिक्षुणी विजयश्री भद्रा इस मठ की मठाधीश थीं। इनको पाल वंश की रानी मल्लिका देवी से दान मिलने के प्रमाण हैं। शायद यह पहली “महिला विहार” हो या फिर इस पर महिला और पुरुष दोनों ही बौद्ध भिक्षु रहते हों।
यह मठ नालन्दा और विक्रमशिला के बीच में है। यह बंगाल जाने के रास्ते में पड़ता है। इसे देखकर यह लगता है कि इसे भी वैसे ही ध्वस्त किया गया होगा जैसे अन्य बौद्ध विहारों और मंदिरों को बर्बर और असभ्य आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़ा गया। खैर , टूटने के बाद भी जो बचा है उसे हम जान पाएँ और समेट पाएँ तो यह हिंदुस्तान के हित में ही होगा …..