जीवन में जो बात सबसे जरूरी है, वो यह कि आप जिंदगी को आनंद से जिएं। खुश रहें। ऐसी कोशिशें करें, जो आपको खुशियों की ओर, अच्छी सेहत की ओर, आपके सपनों की ओर ले जाएं। नए साल को तीन तरीको ं से बनाए नया नया-सा।
वन में सबसे महत्त्वपूर्ण खुश रहना होता है, क्योंकि जब हम दिल से खुश होते हैं, तब जिंदगी खूबसूरत लगने लगती है। वहीं, उदासी वाले क्षणों में सब कुछ बेरंग और वीरान नजर आने लगता है। आपने भी कभी न कभी जरूर महसूस किया होगा कि किसी दिन सूरज की पहली किरण आशा तथा उम्मीद लेकर आती है और लगता है कि सब कुछ कितना अच्छा है। कितना सुखद है। तब सूरज की रोशनी से लेकर पक्षियों की चहचहाहट तक आपको सब कुछ अच्छा लगने लगता है। लेकिन ऐसा होता क्यों है? मुझे यह सवाल बहुत परेशान करता है कि अकारण ही हम कभी बहुत ज्यादा खुश और कभी बहुत ज्यादा उदास क्यों हो जाते हैं! मेरे हिसाब से इस प्रश्न का उत्तर हमारे भीतर ही कहीं छिपा हुआ है, और इसे ढूंढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं है। बस, हमें अपनी सोच की दिशा बदलने और खुशियों का दायरा बढ़ाने की जरूरत है। जो व्यक्ति ऐसा करने में सक्षम हैं, वे हमेशा ही खुश रहते हैं।
खुशी को बनाएं लक्ष्य
हम अपने जीवन में घटित हो रही घटनाओं को किस रूप में लते हैं, यह पूरी तरह हमारे ऊपर ही निर्भर करता है। कहनेे का तात्पर्य यह है कि अपने जीवन में खूबसूरती तलाशना या सिर्फ दुखों को गिनते रहना आपकी अपनी सोच पर निर्भर है। जब हमारा दिमाग सिर्फ जीवन के कष्टों और कमियों के बारे में सोचने लगता है तो खुशियां और सुखद पल हमें महसूस नहीं होते और धीरे-धीरे हम उन पर ध्यान देना बंद कर देते हैं। पर, इसके विपरीत रोजमर्रा के छोटे-छोटे खुशनुमा पलों को यदि नेमत समझकर जिया जाए, तो जिंदगी खूबसूरत और प्यारी लगने लगती है। तब भविष्य की चिंता नहीं सताती, बल्कि वर्तमान की चुनौतियों से लड़ने का हौसला मिलता है।
वैसे, इसका एक बढ़िया तरीका यह है कि रोजाना दस मिनट आप अपना ध्यान अपने खुशनुमा पलों पर केंद्रित करें और कुछ ऐसा सोचें, जिससे आपको खुशी मिलती है। वह खुशी अपने किसी प्रियजन से मिलना या अपनी किसी पसंदीदा जगह पर घूमना, या कुछ और भी हो सकती है। जब दस मिनट आप इन खूबसूरत क्षणों के बारे में सोचेंगे तो महसूस करेंगे कि धीरे-धीरे तनाव कम हो रहा है और सब कुछ पहले जैसा बने रहने की उम्मीद कायम होने लगेगी।
रखें खुद का ख्याल
कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो दूसरों के बारे में दिल से सोचते हैं और उनको सुकून पहुंचाने के लिए अपने आपको पूरी तरह नजरअंदाज करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी परवाह करना या अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थी होना है। इसलिए अपने आप को प्राथमिकता देना उन्हें परेशान कर देता है। पर, मेरी नजर में यह कोई बुद्धिमानी नहीं है, क्योंकि जब तक आप अपने आप को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे, तब तक किसी और के लिए कुछ करना खुद के साथ अन्याय है।
दरअसल, हर मनुष्य के भीतर प्रेम, दुख, ईर्ष्या, पीड़ा, उत्साह और करुणा जैसे भाव भरे होते हैं, जिन्हें दबाना ठीक नहीं। लेकिन, जब आप अपनी जरूरतों को और अपनी खुशियों को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ दूसरों के बारे में ही सोचते रहते हैं, तो धीरे-धीरे मन में चिड़चिड़ाहट और असंतुष्टि घर करने लगती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि आप किसी और का खयाल रखने से पहले अपना खयाल रखें, क्योंकि जब आप प्रसन्न होंगे, तभी ज्यादा बेहतर तरीके से दूसरों का खयाल रख पाएंगे। इसके लिए बहुत जरूरी है कि कुछ समय सिर्फ अपने लिए निकाला जाए, जिसमें सिर्फ और सिर्फ अपनी खुशी के बारे में सोचा जाए और सिर्फ वह किया जाए, जो सिर्फ आपको संतुष्टि देता हो।
ढूंढ़ें अंधेरे में रोशनी की किरण
हम अपने जीवन की किसी घटना या अनुभव को किस रूप में ले रहे हैं, इस बात का बहुत गहरा प्रभाव हमारी मानसिक स्थिति पर पड़ता है। सरल शब्दों में, जीवन के प्रति हमारी सोच, हमारे भविष्य और हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। जब हम यह सोचने लगते हैं कि खुशियां सिर्फ बाहरी दुनिया में सफलता हासिल करके ही मिल सकती है, तो हम संतुष्टि का अहसास खोने लगते हैं। तब हमें हमेशा असफलता का भय सताता रहता है, जो हमें जिंदगी के छोटे-छोटे खुशनुमा पलों को महसूस नहीं करने देता।
इसके विपरीत यदि यह स्वीकार कर लिया जाए कि खुश और संतुष्ट रहने का बाहरी दुनिया से कोई नाता है ही नहीं, बल्कि यह हमारे अंतर्मन से जुड़ा भाव है, तो कठिन मौकों पर हौसला कम नहीं होता, बल्कि उनसे और ज्यादा मजबूती से निबटने की क्षमता आ जाती है। देखिए, हमारे जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन पर हमारा वश नहीं होता। आप बेशक उन बातों को पसंद ना करें, लेकिन उन्हें बदल नहीं सकते। ऐसे में लगातार अपने भाग्य और जिंदगी को कोसने की बजाय यदि उन चीजों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया जाए, जिनसे आपको खुशी मिलती है, तो बुरे दौर को सहने की शक्ति खुद-ब-खुद आ जाती है।
मसलन, किसी प्रियजन की आकस्मिक मृत्यु बेशक एक अपूरणीय क्षति है, पर जिंदगीभर सिर्फ उसे याद करके आंसू बहाते रहने से काम नहीं चलता। बेहतर है कि आप उसके साथ बिताए गए खुशनुमा पलों की यादों को दिल में संजोकर जीवन में आगे बढ़ने की सोचें, ताकि निराशा के बादल छंट सकें।
The Benefits of Having a Partner Who Shares Your Fitness Journey By Pankaj Dhuper,…
Strong at 47: How Quantified Nutrition & Strength Training Redefine Menopause Wellness By Ruchi Bhardwaj…
The Importance of Core Training for Moms and Pageant Women By Shweta Jain, Fitness…
Kya Aapko Pata Hai? – Muscle Loss 30 Ke Baad Aur Uska Solution By…
Fitness After 40: The Turning Point for Your Health and Longevity By Rupali Jagbandhu,…