Categories: Blissful Bihar

छठ प्रकृति और जीवन चक्र समझने का महापर्व

Spread the love

ये छठ है. ये हठ है. ये मानवता की हठ है. तमाम पाखंडों से दूर प्रकृति से जुड़ने की हठ है. नदी में घुलने की हठ है. रवि के साथ जीने की हठ है. रवि का साथ देने की हठ है. कौन कहता है कि जो डूब गया सो छूट गया. कौन कहता है कि जो अस्त हो गया वो समाप्त हो गया. जैसे सूर्य अस्त होता है वैसे फिर उदय भी होता है. अगर एक सभ्यता समाप्त होती है तो दूसरी जन्म लेती है. अगर आत्मा अस्त होती है तो वो फिर उदय भी होती है. जो मरता है वो फिर जन्म लेता है. जो डूबता है वो फिर उभरता है. जो अस्त होता है वो फिर उदयमान होता है. जो ढलता है वो फिर खिलता भी है. यही चक्र छठ है. यही प्राकृतिक सिद्धांत छठ का मूल है. यही भारतीय संस्कृति है. छठ इसी प्रकृति चक्र और जीवन चक्र को समझने का पर्व है.

छठ अंत और प्रारंभ की समग्रता को समान भाव से जीवन चक्र का हिस्सा मानना है. पूजा दोनों की होनी है. प्रारंभ की भी और अंत की भी. छठ प्रकृति चक्र की इसी शाश्वतता की रचना है. मानव सभ्यता की अमर होने की कल्पना है तो आत्मा की अजय होने की परिकल्पना है. छठ सिर्फ महापर्व नहीं है, छठ जीवन पर्व है. जीवन के नियमों को बनाने का संकल्प छठ है. उन नियमों का फिर पालन छठ है. अपनों का साथ, अपनों की पूजा छठ है. घर की तरफ लौटने का नाम छठ है. सात्विकता का सामूहिक संकल्प छठ है. जो गलती हुई हो, जो गलती करते हों वो अब नहीं दोहराने का नाम छठ है. अपराधी का अपराध ना करना छठ है. प्रकृति का हनन रोकना छठ है.

गंदगी, काम, क्रोध, लोभ त्यागना छठ है. नैतिक मूल्यों को अपनाने का नाम छठ है. सुख सुविधा को त्यागकर कष्ट को पहचानने का नाम छठ है. शारीरिक और मानसिक संघर्ष का नाम छठ है. छठ सिर्फ प्रकृति की पूजा नहीं है. ये व्यक्ति की भी पूजा है. व्यक्ति प्रकृति का ही तो अंग है. छठ प्रकृति के हर उस अंग की उपासना है जो हठी है. जिसमें कुछ कर गुजरने की, कभी निराश न होने की, कभी हार ना मानने की, डूब कर फिर खिलने की, गिर कर फिर उठने की हठ है. ये हठ नदियों में है, ये हठ बहते जल में है, ये हठ अस्तोदय सूर्य में है, ये हठ किसान की खेती में है, ये हठ छठ व्रतियों में है.

इसलिए छठ नदियों की पूजा है, सूर्य की पूजा है, परंपराओं की पूजा है. अपने खेत से उगे केले के उगने की, गन्ने के जन्म लेने की, सूप को बुनने की, दौरा को उठाने की, निर्जल अर्घ्य देने की पूजा है. व्रत करने वाले व्रतियों की पूजा है. क्योंकि छठ व्रती भी उतने ही पूज्यनीय हैं जितनी की छठी मइया और उनके भास्कर भइया. छठ प्रत्यूषा की पूजा है तो ऊषा की भी पूजा है. ये जल की पूजा है तो वायु की भी पूजा है. व्यक्ति के कठोर बनने की प्रक्रिया है. 4 दिनों तक होने वाले तप की पूजा है. छठ में कला भी है और कृति भी है. वास्तव में छठ सिर्फ पूजा नहीं है ये आध्यात्मिक क्रिया है.

छठ व्यक्ति को प्रकृति से जोडने की प्रक्रिया है. ये प्रक्रिया योग साधना जैसी है. इसमें संपूर्ण योग है. शरीर और मन को पूरी तरह साधने वाला योग है. इसमें यम भी है इसमें नियम भी हैं. कम से कम साधन उपयोग करने का नियम है, सुखद शैय्या को त्यागने का नियम है तो तामसिक भोज को त्यागने का नियम भी है. विचारों में सत्यता और ब्रह्मचर्य का यम भी है. छठ का अर्घ्य आसन स्वरूप है. शरीर को साधने का आसन है, जल के अंदर उतर कर कमर तक पानी में लंबे समय तक खड़ा रहना योगासन है. पानी में सूर्य देव को अर्घ्य देकर पंच परिक्रमा कठिन शारीरिक आसन है. छठ में आसन है तो प्राणायाम भी है. कठिन छठ व्रत बिना श्वास उपासना के संभव नहीं है.

सूर्योपासना श्वास नियंत्रण से ही संभव है. नियंत्रण तो खान पान का भी है. अन्न जल त्याग कर दूसरे दिन एकांत में खरना ग्रहण करने का अनुशासन है. ये अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण करने जैसा है. इसलिए छठ में प्रत्याहार भी है. छठ के केंद्र में सूर्य पूजा और व्रत हैं. चारों दिन की धारणा में आदित्य का मूर्त रूप है. निर्जल व्रत चंचल मन को स्थायित्व प्रदान करता है. व्रती ध्यान मग्न होता है. ध्यान मग्न व्रती आदित्य की धारणा में सूर्य समाधि की और अग्रसर होता है. छठ अपनी संपूर्णता में अष्टांग योग की तरफ बढ़ता दिखाई देता रहता है.

उस महान दृश्य की कल्पना कीजिए जब आराध्य भगवान भास्कर को मनुजता साहस दे रही होती है. वो डूबते भास्कर को अर्घ्य देती है. प्रणाम करती है. शक्ति देती है. भास्कर भगवान हैं. ईश्वर की कल्पना हैं. और अपने भक्तों से अपने अस्तगामी पथ पर मिलने वाली इस अतुल्य मानवीय शक्ति को देख कर जरूर भावुक होते होंगे. डूबते सूरज को अर्घ्य देते हजारों लोगो को देख कर सूर्य की ओर देखो तो सूर्य भी शक्तिमानी दिखने लगते हैं. ढलते सूरज भी स्वाभिमानी लगते हैं. ढलती, गुजरती किरणें भी प्रफुल्लित सी चहक उठती हैं. अनवरत बहती नदियां भी इस अदभुत मानवीय शक्ति को निहारती हैं. कुछ पल ठहर जाती है और अलौकिक आनंद में सहर्ष रम जाती हैं.

जब सूर्य समाधि में व्यक्ति स्वयं निर्जल होकर भास्कर को जल अर्पित करता है तो प्रकृति और व्यक्ति के अतुल्य समर्पण के दर्शन होते है. व्यक्ति के प्रकृति को स्वयं से ऊपर रखने के दर्शन के दर्शन होते है. इस दर्शन से यह भरोसा निकलता है कि जब तक छठ है तब तक प्रकृति ही ईश्वर है, सूर्य ही ईश्वर है. व्यक्ति प्रकृति का ही अंग है और प्रकृति को स्वयं से ऊपर भी रखता है. छठ में व्यक्ति और प्रकृति का ये संबंध जैसे आत्मा और परमात्मा का संबंध दिखाता है. छठ भारतीय संस्कृति के कृतज्ञता दर्शाने के दर्शन का भी नाम है. उत्तर भारत के एक बड़े भूभाग का जीवन दर्शन सिर्फ और सिर्फ मां गंगा, उनकी बहनों और भगवान भास्कर की धुरी पर घूमता है.

नदियों से मिले जल और सूर्य से मिली किरणों ने हमेशा से मानवता को पाला और पोषा है. बड़ी- बड़ी सभ्यताएं और संस्कृतियां नदियों और सूर्य के परस्पर समन्वय से ही विकसित हो पाई हैं. छठ इन नदियों, तालाबों के जल और सूर्य की किरणों को हमारी कृतज्ञता दर्शाने का तरीका है. महापर्व के माध्यम से पूरी की पूरी उत्तर भारतीय संस्कृति मां गंगा, यमुना, सोन, घाघरा, सरयू, गंडक ना जाने और कितनी असंख्य धाराओं, जलाशयों, पोखरों, तालाबों की ओर अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रही होती हैं. ये हमारी संस्कृति का दर्शन है कि हम कृतज्ञ हैं उस अस्त होते रवि के और उदय होते भास्कर के.

जरा सोचिए जब एक साथ हम सभी सूर्य को अर्घ्य देंगे तो कितनी विशाल सामूहिक कृतज्ञता प्रकट होगी. पूरी की पूरी सभ्यता और संस्कृति नतमस्तक होगी इन प्राकृतिक स्रोतों के सामने. हम बता रहे होंगे कि आप हैं तो हम हैं. नदियां हैं तो हम हैं. सूर्य हैं तो हम हैं. जलाशय हैं तो हम हैं. सामूहिक कृतज्ञता को दर्शाना ही हमारा उत्सव है, पर्व है, त्यौहार है. ये कृतज्ञता हम अपने मेहनत से उगाए केले, गन्ने, सुथनी और मन से बनाए खरना और ठेकुआ के लोकमन के माध्यम से दर्शा रहे होंगे. लोकमन का छठ वो अदृश्य सूर्याकर्षण भी है जो हर व्यक्ति को सूर्य की तरफ खींचता है ये शायद वही गुरुत्वाकर्षण है जिससे सूर्य पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है. छठ में गंगाकर्षण भी है जो पूरे समाज को नदियों और जलाशयों की तरफ मोड़ता है.

नदियों और सूर्य की तरफ मुड़ा समाज पुरातन सामाजिक चेतना को जगाता रहता है. जीवन शैली में होने वाले बदलावों से सांस्कृतिक चेतना पर आंच नहीं आने देता है. अक्षुण्ण लोक संस्कृति ही समाज के संगठित स्वरूप का निर्माण करती है और उसे समय-समय पर विघटन से बचाती है. संगठित समाज लोकपर्व के माध्यम से ही अपने अंदर आई दरारों को भरने का काम करता है. अपने आप को पुनः स्वस्थ करता है.

नदियों पर आया समाज, सूर्य को अर्घ्य समर्पित करती संस्कृति वहां उन घाटों पर एक सामाजिक संवाद करती भी दिखती है. इतना बड़ा समाज एक जगह एक समय पर एक विषयवस्तु पर एक राय होता है. सब प्रकृति के सामने नतमस्तक होते हैं. अपनी-अपनी कृतज्ञता प्रकट कर रहे होते हैं. कौन किस रंग का है, किस जाति का है, किस वर्ण से है और कितना अर्थ लेकर जीवन यापन कर रहा है ये सब सूर्य के सामने निरर्थक हो जाता है. छठ पूजा ना सिर्फ सामाजिक संवाद कराती है अपितु समाज में आपसी आकर्षण बढ़ा कर समरसता लाती है. वर्ण, जाति, रंग भेद से कहीं ऊपर उठ जाता है सामाजिक संवाद.

हमें ज़रूरत है छठ जैसे पर्वों को संभालने की, उन्हें अगली पीढि़यों तक पहुंचाने की, लोक मानस के इस महापर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाने की. हमें ज़रूरत है छठ में निहित तत्वों के मूल अर्थों को समझने की, उन अर्थों के व्यापक विस्तार की, उस विस्तार को सामाजिक स्वीकार्यता दिलाने की, स्वीकृत विस्तार को लोक मन में ढालने की, छठ को हमेशा मनाते रहनी की, लोक पर्व के माध्यम से सशक्त समाज और जाग्रत राष्ट्र बनाने की, छठ के माध्यम से गंगा की संस्कृति को विश्व की सबसे श्रेष्ठ संस्कृति बनाने की.

लोकआस्था के अभूतपूर्व महापर्व छठ की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं. भगवान भास्कर सभी को ओजस्वी बनाएं.

लेखक :

विनय ओम तिवारी

भारतीय पुलिस सेवा

पुलिस अधीक्षक,भोजपुर,बिहार

डिस्क्लेमर: यह आलेख  विनय ओम तिवारी ने लिखा है. इस आलेख के सारे अंश, विचार, तथ्य पर उनका ही कॉपीराइट है.

Sushmita

Recent Posts

  Myth Buster: Is Gluten Really the Cause of Gastrointestinal Issues? By Pankaj Dhuper,Fittr Coach…

16 hours ago

The Benefits of Having a Partner Who Shares Your Fitness Journey

  The Benefits of Having a Partner Who Shares Your Fitness Journey By Pankaj Dhuper,…

20 hours ago

Strong at 47: How Quantified Nutrition & Strength Training Redefine Menopause Wellness

Strong at 47: How Quantified Nutrition & Strength Training Redefine Menopause Wellness By Ruchi Bhardwaj…

3 days ago

The Importance of Core Training for Moms and Pageant Women

  The Importance of Core Training for Moms and Pageant Women By Shweta Jain, Fitness…

3 days ago

Kya Aapko Pata Hai? – Muscle Loss 30 Ke Baad Aur Uska Solution

  Kya Aapko Pata Hai? – Muscle Loss 30 Ke Baad Aur Uska Solution By…

1 week ago

Fitness After 40: The Turning Point for Your Health and Longevity

  Fitness After 40: The Turning Point for Your Health and Longevity By Rupali Jagbandhu,…

1 week ago