लेखिका: अनामिका शर्मा
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, राजकुमारी सावित्री ने जब अपने पति सत्यवान के जीवन में संकट देखा, तो उन्होंने कठिन तपस्या और यमराज से तर्क और बुद्धिमता से संवाद कर उनके प्राण वापस पा लिए। यह कहानी भारतीय नारी शक्ति, विवेक और अडिग प्रेम का प्रतीक बन गई।
नहीं, यह व्रत विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं के लिए है। विधवा महिलाओं के लिए अन्य व्रत जैसे करवा चौथ आदि के विकल्प नहीं होते, पर वे भगवान से अपने बच्चों के लिए आशीर्वाद मांग सकती हैं।
हाँ, लेकिन उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए फलाहार लेना चाहिए। पूर्ण उपवास करने की आवश्यकता नहीं होती।
यदि आपके आसपास वट वृक्ष उपलब्ध नहीं है, तो उसकी प्रतिमा बनाकर घर में पूजा करें या नजदीकी मंदिर जाएं। कई महिलाएं आजकल डिजिटल पूजा भी करती हैं।
हाँ, “ॐ नमः वट वृक्षाय” और सावित्री स्तुति के मंत्रों का जाप किया जा सकता है। पूजा के अंत में “सावित्री व्रत कथा” जरूर सुनें या सुनाएं।
Instagram/FB पोस्ट कैप्शन:
“वट सावित्री व्रत – प्रेम, निष्ठा और प्रकृति के समर्पण का पर्व। सावित्री जैसी नारी शक्ति को प्रणाम।”
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वट सावित्री व्रत केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि नारी शक्ति, प्रकृति संरक्षण और पारिवारिक मूल्यों की एक सुंदर मिसाल है। सावित्री की कथा आज भी हर स्त्री को यह सिखाती है कि संकल्प, प्रेम और विवेक से कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है। वर्ष 2025 में यह पर्व विशेष संयोगों के साथ आ रहा है – आइए इस दिन को और भी अर्थपूर्ण बनाएं।
लेखिका: अनामिका शर्मा
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